Posts

बलवान कृषि का बहोत ही जबरदस्त BS-22D बैटरी स्प्रेयर पंप 12 वोल्ट्स x 12 एम्पीयर डबल मोटर | हाई प्रेशर अप टू 20 फीट | नैप्सैक स्प्रेयर | 20 लीटर टैंक कैपेसिटी

Image
बलवान स्प्रे पंप ऑर्डर करने के लिए, यहां क्लिक करें                     इस आइटम के बारे में  20 लीटर टैंक क्षमता || वर्जिन प्लास्टिक टैंक स्प्रेयर गन से 30 फीट तक स्प्रे करें 12 वोल्ट x 12 एम्पियर डबल मोटर चार्जिंग समय 5-6 घंटे पूरी तरह चार्ज होने पर 15-20 टैंक स्प्रे करें 20 फीट ऊंचाई तक स्प्रे करने के लिए 1.5 फीट स्प्रे गन मुफ़्त में मिलती है भारत का सबसे ज़्यादा बिकने वाला बैटरी स्प्रेयर 6 महीने की मैन्युफैक्चरिंग वारंटी अलग-अलग उद्देश्यों के लिए 4 तरह के नोजल के साथ आता है। बॉक्स में क्या है?   4 नोजल सेट लांस डिलीवरी पाइप 1.5 फीट स्प्रेयर गन फ्री चार्जर यूजर मैनुअल वॉशर और रेगुलेटर कैप टैंक फ़िल्टर टैंक सक्शन फ़िल्टर क्लच बलवान स्प्रे पंप ऑर्डर करने के लिए, यहां क्लिक करें बलवान स्प्रे पंप आर्डर करने के लिए, यहां क्लिक करें बलवान स्प्रे पंप आर्डर करने के लिए,यहां क्लिक करें बलवान स्प्रे पंप आर्डर करने के लिए, यहां क्लिक करे

फूले दृवा (KDS 992) सोयाबीन है, सबसे ज्यादा पैदावार देनेवाली सोयाबीन की प्रजाति

Image
 आज आपको सोयाबीन की सबसे ज्यादा पैदावार देनेवाली प्रजाति के बारे में बताने वाले है, ये सोयाबीन की प्रजाति बहोत ही जबरदस्त है, और किसान भाई को बहोत ही ज्यादा फायदा पहोचाने वाली है, पूरा वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक करे                     इस प्रजाति का नाम है फूले दृवा   KDS 992                    इस प्रजाति को महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ, राहुरी . कृषि संशोधन केंद्र , डिग्रज . इन्होंने विकसित किया है।  इस प्रजाति की खासियत ये है की , इस प्रजाति के पौधे का फैलाव और  इसकी हाइट अच्छी है, जिसके कारण इसमें फूल और फल्लियां बहोत ज्यादा तादात में लगती है, इसका दाना बहोत मोटा होता है, और उसमे 18.25% तेल होता है, जिसके कारण ये प्रजाति सबसे ज्यादा पैदावार देती है। एक एकड़ के लिए आपको 25 से 30 किलो बीज लगेंगा और ये प्रजाति 100 से 105 दिनो में पककर तयार हो जाएंगी। इस प्रजाति में रोगों सहेने की क्षमता अच्छी है, जिसके कारण इसमें ज्यादा रोग नही आता इसकी पैदावार 25 से 30 क्विंटल पर हेक्टर है,  किसान भाइयों को इस प्रजाति ने 15 क्विंटल पर एकड़ की पैदावार दी है। इस प्रजाति को दक्षिण महाराष्ट्र, तेलंगाना

कम समय में आनेवाली सोयाबीन की नई प्रजाति MACS 1188

Image
MACS 1188  ये कम समय में आने वाली सोयाबीन की प्रजाति है। बड़े साइज के दाने, और 3 से 4 दानों की फल्ली  100 दानों का वजन 11.5 से 12 ग्राम होता है, इसके पौधे को सफेद फूल आते है, और इसके फल्ली पे बालों जैसा बारीक रूवा होता है,  ये प्रजाति जब पक जाती है, इसकी फलियां पूरी सुख जाति है, तो ये फूटती नही, जिसके कारण हमारा नुकसान नहीं होता, ये प्रजाति के पौधे का खोड़ मोटा होता है, जिसके कारण पौधा जमीन पे गिरता नही, पौधे को फल्लियां जमीन से 5 से 7 सेमी, ऊपर लगती है,  MACS 1188 सोयाबीन 100 दिनो में पककर तयार हो जाती है, जहां पर सब्टेंबर महीने के आखिर तक बारिश अच्छी होती है, और पानी का अच्छा बंदोबस्त है, ऐसी जगह पे इस प्रजाति को बोना चाहिए, इसकी उत्पादन क्षमता 12 से 15 प्रति एकड़ है, एक एकड़ के लिए आपको 25 किलो बिक लगता है, और इस सोयाबीन के प्रजाति में रोगों को सहेने की क्षमता बहोत है, इसलिए इस पर कोईभी रोग ज्यादा असर नहीं करता है,

HI- 1544 गेहूं की पूरी जानकारी, HI-1544 गेहूं कैसा है

Image
  HI -1544 गेहूं  आज हम आपको HI-1544 गेहूं के बारे में पूरी जानकारी देने वाले हैं। HI-1544 गेहूं एक उच्च उपजाऊ गेहूं की विशेष जाति है, जो भारत में इसकी खेती की जाती है। यह गेहूं विभिन्न मौसम और जलवायु शर्तों में अच्छी उपजाऊता प्रदर्शित करता है। HI-1544 गेहूं उत्तम रूप से खेती के लिए समर्थ होती है, और इसमें अच्छी गुणवत्ता वाला आटा बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस गेहूं में अच्छी बीजता होती है और यह विभिन्न प्रकार के भोजन उत्पादों के लिए उपयुक्त होती है। HI-1544 गेहूं की खेती भारत के कई क्षेत्रों में की जाती है और यह उत्तर भारतीय राज्यों में प्रमुख रूप से पायी जाती है। HI-1544 गेहूं ये गेहूं  110 से 115 दिनों में पककर तयार हो जाता है। 2 से 3 पानी में ये गेहूं आ जाता है, (अच्छी भरी जमीन में ) ये गेहूं एक एकड़ में 34 से 38 क्विंटल होता है। इस का दाना मोटा और चमकदार होता है। इसका तना अच्छा मोटा होता है, और कल्लो (ब्रांचेस) की संख्या ज्यादा होती है। इसकी हाईट कम होने से ये गेहूं गिरता नही है।

काबुली चने की नई प्रजाति PKV-2 की पूरी जानकारी

Image
  PKV-2 PKV-2 चना एक प्रमुख चने की जाति है जो कि महाराष्ट्र कृषि विद्यापीठ (Maharashtra Krishi Vidyapeeth) द्वारा विकसित की गई है। यह चना विशेष रूप से उत्तम उत्पादकता, बीमारी प्रतिरोधकता, और मानव एवं पशु पोषण के दृष्टिकोण से प्रसिद्ध है। PKV-2 चना का विशेषतः यह लाभ होता है कि यह विभिन्न क्षेत्रों में उच्च उत्पादकता और अच्छी गुणवत्ता वाले दानों को प्रदान करता है। इसका पोषणीय मूल्य भी उच्च होता है जो पशुओं के लिए भी उत्तम होता है। यह चना सामान्यतः फसलों में मानसून के दौरान बोया जाता है और उत्तर भारत के अनुकूल मौसम वाले क्षेत्रों में अच्छे रूप से विकसित होता है। PKV-2 चना का पोषणीय मूल्य और उच्च उत्पादकता उसे एक विशेष चने की जाति बनाता है जो कि किसानों के लिए लाभकारी हो सकती है। रबी सीजन में बोने का समय उत्तम निर्धारित किया गया है.! चने कि यह जल्दी पकने वाली किस्म है, इसकी अवधि 95 से 115 दिन तक की होती है.! वर्षा की कमी में या केवल एक सिंचाई देने पर भी सूखे की स्थिति होने पर भी यह किस्म उत्तम परिणाम देने में सक्षम है.! इस किस्म में लाइन से लाइन की दूरी 18 इंच (45 X 10 सेंटीमीटर) रखने व

एरंडी की खेती कैसे करते हैं

Image
  एरंड की फ़सल  एरंडी (जिसे अंग्रेजी में Castor भी कहा जाता है) की खेती एक व्यापक विषय है जिसमें कई तकनीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है। यहां कुछ मुख्य चरण दिए गए हैं जो एरंडी की खेती में मदद कर सकते हैं: 1. बीज और बुआई : उत्तम फसल प्राप्त करने के लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीज का चयन करें। इसे मिट्टी में 1-2 सेमी गहराई में बुआई करें। 2. मिट्टी की तैयारी : अच्छी द्रावणी मिट्टी को चुनें और खाद्यानुसार उसे तैयार करें। मिट्टी में अच्छी ड्रेनेज और गहराई बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है। 3. सिंचाई : एरंडी को पूरे विकास के लिए नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है। अधिकतम पानी की आवश्यकता बीज बुआई के समय होती है। 4. रोग और कीट प्रबंधन : नियमित रूप से खेती क्षेत्र को परीक्षण करें और यदि आवश्यक हो तो रोग और कीटों को नियंत्रित करने के उपाय अपनाएं। 5. फसल की देखभाल : समय-समय पर खेती क्षेत्र को साफ़ और सुरक्षित रखें। यह सुनिश्चित करने के लिए कि पौधों को नुकसान न हो, उन्हें प्रकोपित कीटों और रोगों से बचाने के लिए सतर्क रहें। 6. विकास और पक्षागार : एरंडी की पूरी फसल को उसकी सही उम्र पर गठित करें। बीज और फलों की न

लिक्विड यूरिया के फायदे

 लिक्विड यूरिया कई तरह की खेती में उपयोगी हो सकती है। इसके कुछ मुख्य फायदे निम्नलिखित हो सकते हैं: 1. त्वरित निष्कर्षण : लिक्विड यूरिया का उपयोग करने से पौधों को पोषक तत्व त्वरित रूप से मिल जाते हैं, जिससे उनकी उच्च ग्रोथ दर होती है। 2. पोषक तत्व स्थिरता : यूरिया में मौजूद नाइट्रोजन जल्दी से पौधों द्वारा अवशोषित होता है और फसल को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है, जिससे पौधों की स्थिरता बनी रहती है। 3. जल संचयन : लिक्विड यूरिया को पानी में मिलाकर प्रयोग करने से जल संचयन बढ़ता है, क्योंकि यह पौधों द्वारा सर्वश्रेष्ठ रूप से अवशोषित होता है। 4. समीक्षित पोषण : यूरिया का उपयोग फसलों को समीक्षित और संतुलित पोषण प्रदान करने में मदद करता है, जिससे उनकी उत्पादकता में सुधार होता है। लिक्विड यूरिया को समझने से पहले और इसे उपयोग करने से पहले, स्थानीय कृषि निकायों या कृषि विशेषज्ञों से सलाह लेना उचित होता है, क्योंकि यह विशेष खेती की प्रकृति, मौसम, और फसल के लिए विशेष रूप से अनुकूल हो सकता है।

Popular posts from this blog

रंगबिरंगी मक्का की खेती कैसे करें, जिसकी मार्केट में बहोत डिमांड बढ़ती जा रही है, पूरी जानकारी

एरंडी की खेती कैसे करते हैं

काबुली चने की नई प्रजाति PKV-2 की पूरी जानकारी