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Showing posts from November, 2023

बलवान कृषि का बहोत ही जबरदस्त BS-22D बैटरी स्प्रेयर पंप 12 वोल्ट्स x 12 एम्पीयर डबल मोटर | हाई प्रेशर अप टू 20 फीट | नैप्सैक स्प्रेयर | 20 लीटर टैंक कैपेसिटी

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बलवान स्प्रे पंप ऑर्डर करने के लिए, यहां क्लिक करें                     इस आइटम के बारे में  20 लीटर टैंक क्षमता || वर्जिन प्लास्टिक टैंक स्प्रेयर गन से 30 फीट तक स्प्रे करें 12 वोल्ट x 12 एम्पियर डबल मोटर चार्जिंग समय 5-6 घंटे पूरी तरह चार्ज होने पर 15-20 टैंक स्प्रे करें 20 फीट ऊंचाई तक स्प्रे करने के लिए 1.5 फीट स्प्रे गन मुफ़्त में मिलती है भारत का सबसे ज़्यादा बिकने वाला बैटरी स्प्रेयर 6 महीने की मैन्युफैक्चरिंग वारंटी अलग-अलग उद्देश्यों के लिए 4 तरह के नोजल के साथ आता है। बॉक्स में क्या है?   4 नोजल सेट लांस डिलीवरी पाइप 1.5 फीट स्प्रेयर गन फ्री चार्जर यूजर मैनुअल वॉशर और रेगुलेटर कैप टैंक फ़िल्टर टैंक सक्शन फ़िल्टर क्लच बलवान स्प्रे पंप ऑर्डर करने के लिए, यहां क्लिक करें बलवान स्प्रे पंप आर्डर करने के लिए, यहां क्लिक करें बलवान स्प्रे पंप आर्डर करने के लिए,यहां क्लिक करें बलवान स्प्रे पंप आर्डर करने के लिए, यहां क्लिक करे

गेहूं की फसल में पानी कोनसे समय देना चाहिए

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  गेहूं की प्रमुख विकास चरणों में सिंचाई की आवश्यकता भूमि की नमी, मौसम और वातावरणीय तत्वों पर निर्भर करती है। गेहूं के विभिन्न चरणों में सिंचाई की आवश्यकता निम्नलिखित हो सकती है: 1. बोने के समय : बोने के समय में प्राथमिक तौर पर उपयुक्त मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है ताकि बीज बूट करने के बाद अच्छे से उग सके।  2. पौधों के उगाने के समय : गेहूं के पौधों के उगने के समय में भी सिंचाई की जरूरत होती है। 3. बूट की विकास के समय : जब गेहूं का बूट बन रहा होता है, तो सिंचाई की आवश्यकता बढ़ जाती है। 4. गेहूं के पकने के समय : गेहूं के पकने के समय में भी सिंचाई की आवश्यकता हो सकती है, विशेषकर अगर मौसम अत्यधिक गर्म या बारिश कम हो रही हो। इन सभी चरणों में, सिंचाई की मात्रा और अक्षमता की व्यवस्था भूमि की प्रकृति, प्राकृतिक नमी, बूटों की संख्या, विशेषताएं आदि पर निर्भर करेगी। यह स्थानीय कृषि विशेषज्ञ से परामर्श लेना उपयुक्त होगा ताकि आपको सटीक सिंचाई की जानकारी मिल सके।

गेहूं की फसल में NPK, सल्फर, यूरिया कितना देना चाहिए

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 गेहूं की फसल में खाद्यानुसार विभिन्न मात्राओं में खाद्यांकों की आवश्यकता होती है। यह विभिन्न क्षेत्रों और मौसम के आधार पर भी बदल सकती है। नीचे एक सामान्य चार्ट दिया गया है जो गेहूं की सामान्य खाद्यानुसार सिफारिश करता है: 1. **NPK खाद्यानुसार (किलो प्रति हेक्टेयर):**    - नाइट्रोजन (N): 100-120    - फॉस्फेट (P): 50-60    - पोटाश (K): 40-50 2. **सल्फर (किलो प्रति हेक्टेयर):**    - 20-30 3. **यूरिया (किलो प्रति हेक्टेयर):**    - 60-80 4. **नॉर्मल (किलो प्रति हेक्टेयर):**    - 30-40 ध्यान दें कि यह सिफारिशें आम रूप से हैं और स्थानीय मानदंडों, भूमि की उपलब्धता, पिछली फसलों और मौसम की शर्तों के आधार पर बदल सकती हैं। इसलिए, सबसे अच्छा होगा कि आप अपने क्षेत्र के कृषि विशेषज्ञ से सलाह लें और वहाँ की भूमि के अनुसार खाद्यानुसार को निर्धारित करें।

रंगबिरंगी मक्का की खेती कैसे करें, जिसकी मार्केट में बहोत डिमांड बढ़ती जा रही है, पूरी जानकारी

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आज आपको रंगबेरंगी मक्का के बारे में बताने वाले है, जिसकी खेती करके आप बहोत सारे पैसे कमा सकते हो,   वो कैसे चलिए आपको बताते है। ये मक्का की खासियत ये है की , इसका हर एक दाना अलग रंग का होता है, जिसके कारण ये मक्का बहोत आकर्षित दिखती है, और खाने में भी बहोत स्वादिष्ट लगती है। ग्राहक इसे देखते ही खरीद लेते है।  चलिए जानते है की इसका उत्पादन हम कैसे ले सकते है। ये मक्का का उत्पादन हम आम मक्का के तरह ही ले सकते है, इसकी मार्केट में बहोत सारी प्रजातियां उपलब्ध है, आप कोईभी अच्छी प्रजाति लेकर अपने खेत में इसकी बुवाई कर सकते है। बुआई और दूरी : बुआई को सही समय पर करें और बीच दो माखी की दूरी रखें ताकि पौधे अच्छे से विकसित हो सकें।रब्बी और खरीफ दो ही सीजन में हम इसकी बुवाई कर सकते है, प्रजाति के टेस्ट वेट अनुसार लगभग 7 से 8 किग्रा प्रति एकड़ बुवाई के लिए बीज लेना चाहिए। आपको खरपतवार(घास) नही होने देना है, इस खास खयाल रखना है।   सिंचाई : समय समय पर सिंचाई करें, खासकर फूलने के समय में। उचित जल समीक्षा करें और बर्डर इर्रिगेशन की तकनीक का भी प्रयोग कर

10.26.26 खाद और उसके फायदे

10.26.26 एक प्रकार की NPK खाद होती है, जिसमें नाइट्रोजन (N), फॉस्फोरस (P), और पोटाश (K) की विशेष अनुपात में मिश्रण होता है। इस खाद में विशेष पोषण तत्वों की यह समानुपातिक मिश्रण खेती में उपयोगी होता है। फायदे : 1. विकास और ग्रोथ को सहायता: NPK खाद पौधों की समृद्ध विकास और ग्रोथ के लिए आवश्यक नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, और पोटाश प्रदान करती है। 2. फसल के उत्पादन में वृद्धि : यह खाद फसल के उत्पादन में वृद्धि कर सकती है, विशेष रूप से पौष्टिकता और बढ़ी हुई उपजाऊता के माध्यम से। 3. बेहतर रोपण : इसमें मौसम की परिस्थितियों के अनुसार विभिन्न प्रकार के पोषण तत्वों की सहायता होती है, जो सही समय पर पौधों को प्रदान किये जा सकते हैं। 4. रोग प्रतिरोध : NPK खाद उत्पादों को रोगों और कीटों से बचाने में मदद कर सकती है, क्योंकि यह पौधों को स्ट्रेस से बचाव करने में सहायता करती है। 5. फलदायकता : यह पौधों की मानक फलदायकता को बढ़ा सकती है और बेहतर उत्पादन प्रदान कर सकती है। NPK 10.26.26 एक व्यापक रूप से प्रयोग की जाने वाली खाद है, लेकिन प्रत्येक खेती के लिए व्यक्तिगत परिस्थितियों का ध्यान रखते हुए सही मात्रा और समय

अच्छी पैदावार देने वाली चनेकी प्रजातियां

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भारत में कई प्रकार की चना (ग्राम) प्रजातियां हैं जो अच्छी पैदावार देने वाली मानी जाती हैं। यहां कुछ मुख्य चना प्रजातियां हैं जो पैदावार में प्रसिद्ध हैं: 1. काबुली चना (Kabuli Chana) : यह चना बड़ी चकोर आकार की होती है और उच्च गुणवत्ता वाली मानी जाती है। यह चना उत्तर भारत में बड़े पैमाने पर उगाई जाती है और बड़ी उपजाऊता देती है। 2. डेसी चना (Desi Chana) : यह चना छोटे आकार की होती है और ज्यादातर मध्य और दक्षिण भारत में उगाई जाती है। यह बाजार में बहुत प्रसिद्ध है और अच्छी पैदावार देती है। 3. मटर चना (Matar Chana) : यह चना भी भारत में व्यापक रूप से उगाई जाती है और पैदावार में मानी जाती है। यह चना उत्तर भारत में प्रचलित है। 4. काला चना (Kala Chana) : यह भी भारत में व्यापक रूप से उगाया जाता है और पैदावार में प्रसिद्ध है। यह चना उत्तर और मध्य भारत में उगाया जाता है। यह प्रजातियां भारतीय बाजार में प्रमुखता से मिलती हैं और पैदावार में अच्छा उत्पादन करती हैं। लेकिन इसके अलावा भी अन्य चना प्रजातियां होती हैं, जो कि अलग-अलग क्षेत्रों में अच्छी पैदावार देती हो सकती हैं। व्यापक रूप से पैद

सबसे ज्यादा पैदावार देने वाली गेहूं की प्रजातियां कौनसी है

भारत में कई प्रकार की गेहूं प्रजातियां उगाई जाती हैं, लेकिन यहां कुछ प्रमुख प्रजातियां हैं जो ज्यादा पैदावार देने वाली मानी जाती हैं: 1. सरसोदी (HD 2967) : यह भारत में एक प्रमुख गेहूं की प्रजाति है जो अच्छी पैदावार देती है। यह अधिकतर उत्तर भारत में उगाई जाती है और अच्छी उपजाऊता की दृष्टि से लोगों की पसंदीदा प्रजाति है। 2. सूखाड़ (DBW 17) : यह गेहूं की एक अन्य प्रमुख प्रजाति है जो भारत में अच्छी पैदावार देती है। यह मध्य और दक्षिण भारत में उगाई जाती है और विभिन्न प्रकार के मौसम और भूमि की स्थितियों में अच्छी उपजाऊता प्रदान करती है। 3. कल्लयान सोना (WH 542) : यह भी एक प्रमुख गेहूं की प्रजाति है जो भारत में उगाई जाती है और अच्छी पैदावार देती है। यह विभिन्न भागों में उगाई जाती है और भूमि और मौसम की विभिन्नताओं में अच्छी उपजाऊता प्रदान करती है। यहां दी गई प्रजातियां भारत में प्रसिद्ध हैं और अच्छी पैदावार देने वाली मानी जाती हैं, लेकिन गेहूं की बेहतर प्रदर्शन देने वाली प्रजातियों का चयन भूमि, मौसम और विशेष रोपण प्रणाली के आधार पर किया जाता है।

गेहूं की बाली में ज्यादा दाने भरने के लिए ये उपाय जरूर आजमाएं

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गेहूं की बाली में ज्यादा दाने भरने के लिए आप कुछ महत्त्वपूर्ण तकनीकों को अपना सकते हैं: 1. बीज का चयन : अच्छी गुणवत्ता वाले बीजों का चयन करें। प्रदर्शित प्रदर्शन, अनुभव और उच्च उत्पादकता वाले हाइब्रिड बीजों का चयन करें। 2. उचित पोषण : गेहूं को उचित मात्रा में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, और पोटाश की खाद प्रदान करें। इसके लिए स्थानीय खाद्यानिकी का उपयोग करें। 3. समय पर सिंचाई : नियमित सिंचाई करें और जलकीर्णता को बढ़ावा दें, खासकर गर्मी के मौसम में। 4. बीमारियों और कीटों का नियंत्रण : फसल को कीटनाशकों और फंगिसाइडों से बचाएं ताकि पौधों पर कोई बीमारी न लगे। 5. अच्छी मानसिकता का परिपालन : गेहूं की सही देखभाल के साथ-साथ, खेतीकर्ता की देखभाल और मानसिकता भी महत्त्वपूर्ण है। सवारी करें और खेती के साथ खुश और सकुशल रहें। 6. अच्छा वातावरण : गेहूं की उच्च उत्पादकता के लिए उच्च तापमान, पर्याप्त जल, और अच्छी मिट्टी की आवश्यकता होती है। 7. बुआई और बीमारियों का नियंत्रण : गेहूं की बुआई के समय अच्छी तकनीक का इस्तेमाल करें और बीमारियों का नियंत्रण करें। यह सभी कदम उन्हीं क्षेत्रों में सफलता प्राप्त क

कपास की रिकॉर्ड तोड पैदावार लेने का एकदम नया तरीका

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आज हम आपको कपास कीं फसल के बारे में बहोत ही जरूरी जानकारी देने वाले है। जिससे कपास की पैदावार जबरदस्त होंगी ये जानकारी मिट्टी की जांच करने के बाद बनाई गईं है। और अच्छी बागवानी वाली जमीन के लिए है। एक एकड़ खेत में कपास की बुवाई करने से पहले  24 किलो नायट्रोजन  20 किलो फाॅस्फरस 10 किलो पोटॅश जमीन मे अच्छेसे मीला देना है, या बुवाई कर देना है। कपास की बुवाई के 25 दिन बाद 12 किलो नायट्रोजन 10 किलो फाॅस्फरस 10 किलो पोटॅश . देना है। फीर कपास की बुवाई के 50 दिन बाद 12 किलो नायट्रोजन  फाॅस्फोरस नहीं दालना है 10 किलो पोटॅश. देना है। फीर कपास की बुवाई के 75 दिन बाद 12 किलो नायट्रोजन फाॅस्फोरस नहीं दालना है 10 किलो पोटॅश .देना है। एक बार अपने खेत के मिट्टी की जांच जरुर करें  और नजदीकी कृषि वैज्ञानि या कृषि सलाहकार की राय अवश्य लें . विडीओ देखने के लिए 👇दिए गए लिंक को क्लिक करें कपास की रिकॉर्ड तोड पैदावार लेने का एकदम नया तरीका

गेहूं की ज्यादा पैदावार लेने के लिए क्या करें

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  गेहूं की ज्यादा पैदावार (उत्पादन) प्राप्त करने के लिए कुछ उपाय हो सकते हैं: 1. उचित बीज चयन : उच्च गुणवत्ता वाले और प्रदर्शनशील बीजों का चयन करें जो आपके क्षेत्र की मौसमी शर्तों में अच्छा उत्पादन कर सकते हैं। 2. बेहतर पोषण : खाद्य सामग्री की सही मात्रा में प्रदान करें, जैसे कि अच्छी खाद्य, जल, और मिट्टी में आवश्यक तत्वों की सुरक्षा। 3. समय पर कृषि तकनीक : बुवाई, जलकीर्णता, और खाद्य देने का समय पर करें ताकि पौधों को सही समय पर सहायता मिले। 4. कीट और रोग नियंत्रण : पौधों को कीटनाशक और फंगिसाइड से बचाव करें ताकि उन्हें किसी भी बीमारी या कीट से नुकसान न हो। 5. प्रौद्योगिकी का उपयोग : सेंसर्स, इर्रिगेशन टेक्नोलॉजी, और अन्य तकनीकी उपायों का उपयोग करें जो उत्पादन में सुधार कर सकती हैं। 6. उचित वितरण : पानी की सही मात्रा और समय पर प्रदान करें और सुनिश्चित करें कि संसाधनों का सही ढंग से उपयोग किया जा रहा है। इन उपायों का अच्छी तरह से पालन करके, आप गेहूं की ज्यादा पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। यह सुनिश्चित करना भी महत्त्वपूर्ण है कि आप स्थानीय कृषि विज्ञानी या कृषि विशेषज्ञों से सलाह लें जो आपक

सोयाबीन में अंकुरण की समस्या क्यों आती है।

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आज हम आपको सोयाबीन में जो अंकुरण की समस्या होती है, जिसे हम बीज ना उगना, बीज का जर्मीनेशन ना होना कहते है, इस बारे में बहुत ही जरूरी जानकारी देने वाले है। जब आपके खेत में सोयाबीन की हार्वेस्टींग हो रही हो तभ आपको इन 4 बातों का ख्याल रखना है। सबसे पहले  जब हमारे खेत में सोयाबीन की हार्वेस्टींग होती है, तो हम सोयाबीन को बोरियों में भरकर रख देते है, और उसे देखते नहीं, ईस वजह से सोयाबीन में अंकुरण (germination) की समस्या आती है। सोयाबीन को बोरियों में भरकर रखे हुए एक साल से ज्यादा टाइम हो जाए तो सोयाबीन के बीजों को बिना अंकुरण की जांच कीए (germination test) बुवाई ना करें। दूसरी बात ये है सोयाबीन के बीजों को कडक धूप में सुखाकर बोरियों मे भरकर रखने से बीजों का अंकुरण (germination) कम हो जाता है। तीसरी बात ये है जब हम सोयाबीन को थ्रेशर मशीन से हार्वेस्टींग करें, तो मशीन की स्पीड 400 आर.पी.ए. से ज्यादा हुई तो बीज के अंकुरण (germination) को धक्का लगता है और बीज ज्यादा उगता नहीं है। चौथी बात ये है जब

खेत में सेंसर लगाने के फायदे

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सेंसर्स खेती में एक महत्त्वपूर्ण और आधुनिक तकनीक है जो किसानों को अपनी फसलों की देखभाल, प्रबंधन, और उत्पादकता को सुधारने में मदद करती है। यहां कुछ चरणों में सेंसर से खेती को कैसे किया जा सकता है: 1. सेंसर इंस्टालेशन : शुरुआत में, विभिन्न सेंसर्स को खेत में इंस्टॉल किया जाता है। ये सेंसर्स विभिन्न पैरामीटर्स जैसे कि मिट्टी की नमी, वायुमंडल, तापमान, फसल के स्वास्थ्य, और पानी की उपलब्धता को मापते हैं। 2. डेटा संग्रहण : सेंसर्स से आने वाले डेटा को संग्रहित किया जाता है ताकि खेती के लिए उपयोगी जानकारी प्राप्त की जा सके। 3. डेटा विश्लेषण : संग्रहित डेटा को विश्लेषित करके, किसान फसलों की सेहत, प्रकृतिक संसाधनों की स्थिति, और उपयुक्त उपायों के बारे में समझ पाता है। 4. नियोजन और निर्णय : इस डेटा का उपयोग करके किसान उपयुक्त निर्णय लेते हैं, जैसे कि कौन सी खेती तकनीक अनुचित हो सकती है, कब और कितना पानी देना चाहिए, कौन सी खाद या कीटनाशक प्रयोग करना चाहिए, आदि। सेंसर से खेती किसानों को अनुकूल तकनीकी ज्ञान प्रदान करती है, जो उन्हें बेहतर फसल प्रबंधन और उत्पादकता में मदद कर सकती है।

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